नेता का पुत्र मोह जागा.... कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की हो सकती हैं अनदेखी....

इंदौर। इंदौर के कांग्रेस नेता का पुत्र मोह जाग गया है। यह नई बात नहीं है, लेकिन इंदौर के कांग्रेस कार्यकर्ता और नेताओं के लिए बुरी खबर जरूर हो सकती है, जिन्होंने मेहनत करके मध्यप्रदेश में सरकार बनाई। यह नेता इन दिनों मुख्यमंत्री के खास सिपहसालार है, जो कभी दिग्विजयसिंह के भी खास सिपहसालार हुआ करते थे। इन पर इंदौर और देवास में सरकारी ज़मीन को हेरफेर में आर्थिक अपराध ब्यूरो में प्रकरण भी दर्ज हो चुके है। यहां बात हो रही है पूर्व मंत्री और पूर्व गृह निर्माण मंडल अध्यक्ष चंद्रप्रभाष शेखर की, जो बूढ़े हो चुके है, किंतु इनका अपने पुत्र के लिए मलाईदार कुर्सी का मोह जाग  गया है।
चंद्रप्रभाष शेखर मुख्यमंत्री कमलनाथ के खास  लोगों में शामिल है। कमलनाथ का पिछले कुछ सालों में प्रदेश के नेताओं से मिलना जुलना करवाते थे। कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद इन्होंने ने कई ऐसे नेताओं को प्रदेश में पद दिलवा दिए , जो ब्लॉक अध्यक्ष के काबिल नहीं थे और ना है। खूब पद की चिट्टियां जारी की।
अब शेखर ने अपने पुत्र के लिए आईडीए अध्यक्ष पद की कुर्सी पर निगाह है। इसके लिए उन्होंने चारों ओर से राजनीतिक किलेबंदी शुरू कर दी है। इसका उदाहरण है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ उनके खातीवाला टैंक के घर के सामने से निकले तो उन्होंने मंच लगा अपने घर पर विजिट करा दी। साथ पुत्र का कमलनाथ से परिचय करवा दिया। यह बात अलग है कि उनके पुत्र का कांग्रेस पार्टी में किसी तरह की सक्रियता नहीं रही और न ही वे राजनीति में रुचि रखते है।
ध्यान रहे कि पूर्व में दिग्विजयसिंह सरकार में महेश जोशी का भी ऐसा ही कुछ परिवारवाद और जातिवाद हावी हो गया था। परिणामस्वरूप कांग्रेस कार्यकर्ता ऐसा घर बैठा की दिग्विजयसिंह से लेकर कई नेताओं के प्रयास के बाद भी आज इंदौर में कांग्रेस लोकसभा नही जीत पा रही है। विधानसभा  चुनाव में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा। यह सब कार्यकर्ताओं की अनदेखी और सिर्फ दरी उठाने जितनी कद्र करने का परिणाम है।
कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नेताओं की औलादों को उपकृत करना जारी रखा तो स्तिथि और गंभीर हो जाएगी। दिग्विजयसिंह के शासन में जो गलती हुई और कार्यकर्ताओं को एक तरफ करके जो एयरलिफ्ट करके पद बांटे, उसका परिणाम दिग्विजयसिंह खुद आज तक भोग रहे है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भोपाल में सरकार आने के बाद लाखों मतों से मिली हार है।